यज्ञोपवीत धारण करने की विधि

हिन्दू धर्म में यज्ञोपवीत धारण करना संस्कृति के महत्वपूर्ण प्रतीक है | यज्ञोपवीत एक संस्कार है जिसमें बालक को तीन सूत्रीय यज्ञोपवित धारण करवाया जाता है इसे पुरे जीवनभर कंधे पर धारण करना होता है| यज्ञोपवित संस्कार क्यों किया जाता है इसका क्या महत्व है और यज्ञोपवीत संस्कार के लिए कौन कौनसी पूजन सामग्री की जरुरत होती है और इसकी विधि क्या है इसके बारे में हम विस्तार से जानेंगें |

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Last updated on : Mon, 27-Mar-2023 Hindi-gujarati

जन्म से मनुष्य संस्कारविहीन होता है और वह एक तरह से पशु सामान होता है | इसलिए जन्म के बाद से ही उसमें विभिन्न संस्कारों द्वारा मनुष्यत्व ग्रहण करवाना होता है | यज्ञोपवीत संस्कार में 3 लड़ों के यज्ञोपवीत जिसे की जनेऊ भी कहा जाता है जो की एक तरह से संकल्प होता है स्वार्थरहित आदर्शवादी जीवन जीने का, स्वयं को परमार्थ में लगाने का और पशुता को त्याग कर शुद्ध सच्चरित्र आचरण प्रस्तुत करते हुए मनुष्यता ग्रहण करने का | 

यज्ञोपवीत संस्कार कब करना चाहिए  :-

यह एक संकल्प है इसलिए इस संस्कार को तब करना चाहिए जबकि बालक की बुद्धि और भावना का विकास हो चूका हो और उसे इस संस्कार के महत्व और प्रयोजन की समझ हो और वह स्वविवेक से इसका निर्वाह कर सके | 

यज्ञोपवित संस्कार के लिए सामग्री और तैयारी :-

पुरातन परंपरा में यज्ञोपवीत धारण करने से पहले बालकों का मुंडन करा दिया जाना चाहिए | यदि मुंडन ना कराएं तो बालों को शालीनता के अनुरूप करा लेना चाहिए | 

जितने बालकों की यज्ञोपवीत होने जा रही है उनके अनुसार ही मेखला ( सूत की डोरी ), कोपीन ( 4 इंच चौड़ी और डेड फुट लम्बी लंगोटी ) , दंड, यज्ञोपवीत और पीले दुपट्टों की व्यस्था कर लेनी चाहिए | 

यज्ञोपवीत को हल्दी से पीला कर देना चाहिए |

 जो भी यज्ञोपवीत धारण करने वाले हो उन्हें नए वस्त्र पहनने चाहिए | एक पीला दुपट्टा अवश्य धारण करना चाहिए | 

कोई पवित्र पुस्तक को पीले वस्त्र में लपेटकर पूजा वेदी पर रखनी चाहिए | 

सरस्वती, गायत्री और सावित्री पूजन के लिए 3 ढेरियां रख देनी चाहिए | 

यज्ञोपवीत संस्कार विधि :-

मेखला एवं कोपीन :- अब पंडित जी मेखला एवं  कोपीन एकत्र करके गायत्री मंत को 3 बार बोलते हुए छींटें दें | इसके बाद उन्हें संस्कार करने वालों को दें | इसके बाद मंत्रोच्चार के द्वारा संस्कार लेने वाले उन मेखला और कोपीन को धारण कर लें | 

मन्त्र :-

ॐ इयं दुरुक्तं परिबाधमाना, वर्णं पवित्रम पुनतीम आगात | 

प्राणपणाभ्यां बलमादधाना, स्वसादेवी सुभगा मेखलेयम || 

दण्डधारण :-

दंड धारण से पहले उस पर पंडित जी गायत्री मन्त्र का जाप करते हुए कलावा बांड दें |  इसके बाद यह दंड मंत्रोच्चार के साथ सांस्कार करने वालों कोतर दे दिया जाये |   

दंड प्रदान करने के दौरान बोले जाना वाला मन्त्र – 

ॐ यो में दंड परापतद, वैहायसो धीभुम्याम | 

तमहं पुनरादद आयुषे, ब्रह्मणे ब्रह्मवर्चसाय | 

यज्ञोपवीत पूजन :-

यज्ञोपवीत देवप्रतिमा है इसलिए उसकी स्थापना से पहले उसका मत्रोच्चार के साथ शुद्ध करना चाहिए और उसके बाद उसमें प्राण प्रतिस्ठा करनी चाहिए | सबसे पहले यज्ञोपवीत यानि की जनेऊ को शुद्ध जल से या गंगाजल से धो लेना चाहिए | इसके बाद दोनों हाथ में लेकर 10 बार गायत्री मन्त्र का मानसिक जाप करना चाहिए | अब हाथ में फूल और चावल लेकर यज्ञोपवीत का मन्त्र  बोलना चाहिए | मन्त्र पूरा होने के बाद चावल और फूल यज्ञोपवीत पर चढ़ा देने चाहिए | 

यज्ञोपवीत मन्त्र :-

ॐ मनो जूतिर्जषतामाज्यस्य, बृहस्पतिर्यज्ञमिमं 

तनोत्वरिष्टं, यज्ञ समिमं दधातु | 

विश्वे देवास इह मदयन्तामो३म्प्रतिष्ठ | 

पंच देवावाहन :-

इसके बाद पञ्च देवताओं ब्रह्मा, विष्णु, महेश, यज्ञ और सूर्य को यज्ञोपवीत के माध्यम से अपने ह्रदय में धारण करें | जब जनेऊ को धारण करें तब इस बात का ध्यान रखें की यगोपवीत केवल एक सूत्र नहीं है  बल्कि यह संकल्प है आदर्शवादिता का जिसके बिना मनुष्य का विकास संभव नहीं है | 

घर के पांच बड़े सदस्य जिन्होंने पहले यज्ञोपवीत धारण कर रखा है वे यज्ञोपवीत पहनाये | इसका भाव यह है की घर के बड़े सदस्यों का सहयोग, अनुभव और मार्गदर्शन हमेशा मिलता रहे |  यज्ञोपवीत धारण करने के लिए दायाँ हाथ ही ऊपर उठाएं और मन्त्र के उच्चारण के साथ यज्ञोपवीत पहना दिया जाए | 

सूर्यदर्शन :-

अब मंत्रो के उच्चारण के साथ भगवान सूर्यनारायण का ध्यान करते हुए हाथ जोड़ कर नमस्कार करें और प्रार्थना करें की जिस प्रकार अपने प्रकाश से प्रकृति को शक्ति देते है उसी तरह हमें भी शक्ति प्रदान करें | 

त्रिपदा पूजन :-

पूजा वेदी पर चावल की 3 ढेरियां  जिन्हें गायत्री, सावित्री और सरस्वती का प्रतीक मानते हुए उनके मन्त्र बोलते हुए उनके मन्त्र बोलकर उन पर अक्षत और फूल चढ़ाएं | 

गुरु पूजन :- 

गुरु के चित्र के साथ अक्षत पुष्प चढ़ाकर उनका पूजन करें और हाथ जोड़कर वंदना करें | 

मन्त्र दीक्षा  :-

अब संस्कार पाने वालों को बैठ जाना चाहिए | कमर सीधी और हाथ की अँगुलियों को फंसाकर हाथ के अंगूठो को सीधा रखते हुए आपस में मिला लेना चाहिए | मन्त्र दीक्षा चलने तक अंगूठो पर अपनी दृष्टि रखनी चाहिए | मन्त्र सिंचन होने के बाद अपनी दृष्टि हटा सकते है | दीक्षा कर्मकांड कराने वाला गुरु का ध्यान करते हुए गायत्री मन्त्र का एक-एक शब्द अलग-अलग करके बोले और दीक्षा लेने वाले उसे दुहराते रहे | क्रम से 5 बार मन्त्र दोहराना चाहिए | 

गायत्री मन्त्र :-

ॐ भूभुर्वः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि | धियो यो नः प्रचोदयात् || 

सिंचन – अभिषेक :-

अब एक सहयोगी कलश में आम के पत्ते, फूल द्वारा मन्त्र के साथ जल के छींटें दीक्षितों पर लगाएं | 

भिक्षाचरण :- 

अब शिष्य दुपट्टे की झोली बना लें और सभी के पास जाकर भिक्षा मांगे | सबसे पहले भिक्षा मांगने के लिए माँ के पास जाएं और कहे “भवति भिक्षां देहि” फिर पिता के पास जाएं और बोले “भवान भिक्षां देहि”  इसी तरह अपने कुटुंब के महिला और पुरुषों के पास जाएं और महिलाओं के पास जाकर भवति भिक्षां देहि और पुरुषों के पास जाकर ‘भवान भिक्षां देहि’ कहते हुए भिक्षा मांगे और उपलब्ध सामान को गुरु के सम्मुख चढ़ा दें | 

यज्ञोपवीत मन्त्र :-

ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं, प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात | 

आयुष्यमग्रयं प्रतिमुञ्च शुभ्रं, यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः || 

यज्ञोपवीत के नियम :- यज्ञोपवीत एक अत्यंत ही पवित्र संस्कार है जो यज्ञोपवीत आप धारण करते है इसमें माँ गायत्री और यज्ञ पिता की संयुक्त प्रतिमा मानी जाती है इसलिए जब आप इसको धारण करते है तो कुछ नियमों का आपको पालन करना चाहिए – 

यज्ञोपवीत धारण करने के बाद जब भी मल मूत्र विसर्जन के लिए जाएं तो यज्ञोपवीत को दाहिने कान पर चढ़ा लें और निवृत होने के बाद हाथ धो लें और उसके बाद ही उसे स्वच्छ करके उतरना चाहिए | इसका भाव यह है की यज्ञोपवीत कमर से ऊँचा हो जाये और अपवित्र ना रहे | 

अगर यज्ञोपवीत को 6 महीने से अधिक समय हो गया हो या उसकी कोई लड़ टूट गयी हो तो उसे बदल कर नयी यज्ञोपवीत धारण करनी चाहिए | 

यदि परिवार और कुटुंब में कोई बच्चे का जन्म हो या किसी की मृत्यु हो तो जन्म और मरण के सूतक लग जाते है ऐसे में सूतक पूरे होने के बाद यज्ञोपवीत बदल देना चाहिए | 

यज्ञोपवीत को हमेशा पहने रहना जरुरी है यदि उसे साफ़ करना है या बदलना है तो उसे गले में पहने हुए ही धो लेना चाहिए | 

इसमें कभी भी कोई चाबी या अन्य वस्तुओं को नहीं बांधना चाहिए |